अधूरा वादा
जब एक बच्चा घर से स्कूल के लिए निकलता है तो उसकी माँ उससे कहती है , कि जल्दी घर आ जाना , स्कूल से कहीं और ना चले जाना दोस्तों के साथ , बच्चा भी माँ से वादा करता है कि "माँ मैं स्कूल से सीधा घर आऊंगा" पर उस दिन पेशावर मे बच्चे अपनी माँ से ये वादा कर तो गए पर वो ये वादा कभी पूरा नही कर पाएंगे I इस बात का मलाल पूरी कायनात को ता क़यामत तक रहेगा I
"किया था वादा वक़्त-ए-रुखसत जो निभा न सका
माँ* मैं लौट कर स्कूल* से घर आ न सका"
एक सवाल उन देहसतगर्दों से कि इस कायरतापूर्ण, अमानवीय अपराध को करने से पहले क्या उन्हें अपनी माओं का ज़रा भी ख्याल नहीं आया ? क्या उन्हें एक माँ के दर्द का ज़रा भी एहसास नही हुआ ?
बचपन में अपने स्कूल के किताब मे पढ़ी वो कहानी अब झूठी लगती है , जिसका शीर्षक था "The Selfish Giant" जिसमे एक मासूम बच्चे के आगे एक राक्षश का दिल भी पिघल जाता है तो फिर ये किस तरह के राक्षश थे जिनका दिल मासूमों का लहू बहाते और उनपर गोलियां बरसाते हुए ज़रा भी ना पिघला.
कहते हैं बच्चे फ़रिश्ते होते हैं, तो जो इसे खुदा की लड़ाई कहते हैं वो सायद भूल गए की खुदा क्या फरिश्तों की जान लेने वालों को कभी माफ़ कर पायेगा ?
"ख़ून के नापाक ये धब्बे, ख़ुदा से कैसे छिपाओगे?,
मासूमों की क़ब्र पर चढ़कर, कौन सी जन्नत में जाओगे?"
- तारिक़ शादाब खान